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15:43, 6 फ़रवरी 2010 अब चलो ये भी ख़ता की जाए
दिल के दुशमन से वफ़ा की जाए
वो ही आए न बहारें आईं
क्या हुई बात पता की जाए
है इसी वक़्त ज़रूरत उसकी
बावुज़ू हो के दुआ की जाए
ज़ुल्म भरपूर किए हैं तूने
अब अनायत भी ज़रा की जाए
दर्दे-दिल है ये मज़ा ही देगा
दर्दे-सर हो तो दवा की जाए