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कथावाचक / अरुण कमल

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'''कथा वाचक'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अरुण कमल|संग्रह = सबूत / अरुण कमल}}{{KKCatKavita}}<poem>हो जो कोई भरे हुँकारी<br />फिर तो कथा सुनाता जाऊँ<br />रात-रात भर<br />
कभी न सोऊँ
चाह नहीं कुछ<br />गाँव नगर में घूम-घूम कर<br />कथा सुनाता जाऊँ<br />कहीं पेड़ के नीचे या ओटे पर<br />विद्यालय में<br />जहाँ कभी भी जुट जायें जाएँ दस लोग<br />वहीं पर चित्रकूट हो-<br />कहना सब को सब को लाना<br />बच्चे बूढ़े नारी सभी को<br />
बीच-बीच में अर्थ<br />
::::भी थोड़ा कर दूँगा मैं<br />
हाँ हाँ बेटे...शंख बजेगा, आना
हारमोनियम लिये लिए घूमता देस-देस मैं<br />कहीं अभी तक जम नहीं सका हूँ<br />नहीं रही पहिले जैसी उत्सुकता मन में<br />भक्तों के भी<br />बदला समय भाव भी बदले<br />एक जून भोजन भी भारी<br /> ::::भक्तों के घर<br />उत्तर कांड समाप्त<br />अचानक होगा कहीं<br />किसी अज्ञात गाँव में<br />कभी अचानक स्वर अँटकेगा कथा सुनाते<br />कहीं बीच से टूटेगी जीवन चौपाई<br />
अर्थ शेष रह जाएगा
</poem>
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