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02:50, 9 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीप्ति मिश्र
|संग्रह = है तो है / दीप्ति मिश्र
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<Poem>
क्या बताऊँ मैं , कहाँ मेरा खुदा है
मेरे भीतर है , मगर मुझसे जुदा है
न कोई सूरत, न कोई नाम है वो
नक़्श उसका फ़िर भी हर शै पर खुदा है
कर सको महसूस तो महसूस कर लो
वो है वो अहसास जो सब से जुदा है
बात छोटी सी समझ पाओ तो समझो
ख़ुद से ख़ुद जो आ मिले ख़ुद में ख़ुदा है
ज़िन्दगी है दूर तक फैला समंदर
ज़िस्म कश्ती, रूह उसका नाखुदा है
</poem>