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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ,
हम तुम उनमैं समान ही समोई है ।
कहै रतनाकर विभूति पंच-भूत हूँ की,
एक ही सी सकल प्रभूतनि मैं पोई है ॥
माया के प्रंपच ही सौं भासत प्रभेद सबै,
काँच-फलकानि ज्यौं अनेक एक सोई है ।
देखौं भ्रम-पटल उघारि ज्ञान आँखिनि सौं,
कान्ह सब ही मैं कान्हा ही में सब कोई है ॥31॥
</poem>