958 bytes added,
12:01, 9 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के,
जेते उपचार चारु मंजु सुखदाई हैं ।
तिनके चलावन की चरचा चलावै कौन,
देत ना सुदर्शन हूँ यौं सुधि सिराई हैं ॥
करत उपाय ना सुभाय लखि नारिनि को,
भाय क्यौं अनारिनि कौ भरत कन्हाई हैं ।
ह्याँ तौ विषमज्वर-वियोग की चढ़ाई भई,
पाती कौन रोग की पठावत दवाई है ॥34॥
</poem>