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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
चोप करि चंदन चढ़ायौ जिन अंगनि पै,
तिनपै बजाइ तूरि धूरि दरिबौ कहौ ।
रस रतनाकर सनेह निखारयौ जाहि,
ता कच कों हाय जटा-जूट बरिबौ कहौ ॥
चंद अरविंद लौं सराह्यौ ब्रजचंद जाहि,
ता मुख कौं काकचंचुवत करिबौ कहौ ।
छेदि-छेदि छाती छलनी कै बैन-बाननि सौं,
तामें पुनि ताइ धीर-नीर धरिबौ कहौ ॥38॥
</poem>
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