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जो भी मिल जाता है घर बार को दे देता हूँ / अख़्तर नाज़्मी
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15:50, 14 फ़रवरी 2010
<poem>
जो भी मिल जाता है घर बार को दे देता हूँ।
या किसी और तलबगार को
दे
देता हूँ।
धूप को दे देता हूँ तन अपना झुलसने के लिये
Sandeep Sethi
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