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कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो / बशीर बद्र
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17:48, 14 फ़रवरी 2010
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चांदनी
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी
बेचराग़
बेचिराग़
ये घर न हो
वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
Sandeep Sethi
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