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15:36, 15 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
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टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
करने लगती धींगा-मुस्तीह
लगा चौकडी खाट के नीचे
घर भर में कर जाती गश्ती.
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....