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22:43, 15 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=क़तील शिफ़ाई
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<poem>
किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई बन गया<br />
यारो तमाम शहर तमाशाई बन गया
बिन मांगे मिल गए मेरी आंखों को रतजगे<br />
मैं जब से एक चाँद का शैदाई बन गया
देखा जो उसका दस्त-ए-हिनाई करीब से<br />
अहसास गूंजती हुई शहनाई बन गया
बरहम हुआ था मेरी किसी बात पर कोई<br />
वो हादसा ही वजह-ए-शानासाई बन गया
करता रहा जो रोज़ मुझे उस से बदगुमां<br />
वो शख्स भी अब उसका तमन्नाई बन गया
वो तेरी भी तो पहली मुहब्बत न थी क़तील<br />
फिर क्या हुआ अगर कोई हरजाई बन गया