{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार== अफसर कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>आम तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता उस आदमी के बारे मैं में
वह कितने प्रतिशत अफसर है
कितना आदमी बचा हुआ है
यू हँसता मुस्कराता भी है नाप तौल कर
जाने कब नाराज हो जाये
आब अब ऐसे समय कभी अफसर कभी आदमी की लहरे लहरें आती -जाती रहती है उसके चहरे चेहरे पर आप कभी बेतकल्लुफ बेतक़ल्लुफ़ नहीं हो सकते
कभी -कभी वह बहुत ज्यादा आदमी दिखता है
मुस्कराता हुआ जिंदादिल और भला
किसी की बात को इस तरह सुनता हुआ
तब जो चापलूस चेहरा दिखाई देता है
और भी कम प्रतिशत आदमी होता है!
</poem>