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02:45, 17 फ़रवरी 2010 जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग<br />
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग<br />
याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन<br />
सर्द पड़ जाती है चाहत हार जाती है लगन<br />
अब मोहब्बत भी है क्या इक तिजारत के सिवा<br />
हम ही नादां थे जो ओढ़ा बीती यादों का क़फ़न<br />
वरना जीने के लिए सब कुछ भुला देते हैं लोग<br />
जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था<br />
दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था<br />
अब हैं पत्थर के सनम जिनको एहसास ना हो<br />
वो ज़माना अब कहाँ जो अहल-ए-दिल को रास था<br />
अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग