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प्रकृति की ओर / भरत प्रसाद

12 bytes added, 10:02, 17 फ़रवरी 2010
:सुना है-:ममता के स्वभाववश:माता की छाती से :झर-झर दूध छलकता है
:मैं तो अल्हड़ बचपन से:झुकी हुई सांवली घटाओं में:धारासार दूध बरसता हुआ:देखता चला आ रहा हूँ।
:आत्मविभोर कर देने वाला:यह विस्मय:मुझे प्रकृति के प्रति:अथाह कृतज्ञता से:भर देता है।