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प्रकृति की ओर. / भरत प्रसाद

609 bytes added, 20:46, 17 फ़रवरी 2010
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<Poem>
सुना है-
ममता के स्वभाववश
माता की छाती से
झर-झर दूध छलकता है
मैं तो अल्हड़ बचपन से
झुकी हुई सांवली घटाओं में
धारासार दूध बरसता हुआ
देखता चला आ रहा हूँ।
 
आत्मविभोर कर देने वाला
यह विस्मय
मुझे प्रकृति के प्रति
अथाह कृतज्ञता से
भर देता है।
</poem>
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