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स्वर / त्रिलोचन
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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
समय-तार बजा कर जो जगे,
रँग गई धरती अनुराग से,
गगन में नवगुंजन छा गया
.
।
</poem>
अनिल जनविजय
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