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स्वर / त्रिलोचन

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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
 
समय-तार बजा कर जो जगे,
 
रँग गई धरती अनुराग से,
 गगन में नवगुंजन छा गया.</poem>
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