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पयोद और धरणी / त्रिलोचन

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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
 
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
 
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
 बलाका माला से उठ कर उड़े और फहरे.फहरे।</poem>
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