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पयोद और धरणी / त्रिलोचन
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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
बलाका माला से उठ कर उड़े और
फहरे.
फहरे।
</poem>
अनिल जनविजय
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