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कठिन यात्रा / त्रिलोचन
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23:47, 21 फ़रवरी 2010
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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कभी सोचा मैं ने, सिर पर बड़े भार धर के,
सधे पैरों यात्रा सबल पद से भी कठिन है,
यहाँ तो प्राणों का विचलन मुझे रोक रखता
रहा है, कोई क्यों इस पर करे मौन करूणा
.
।
</poem>
अनिल जनविजय
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