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दाग़ / ऐ मेरे दिल कहीं और चल

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'''गीतकार : शैलेन्द्र
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ऐ मेरे दिल कहीं और चल, ग़म की दुनिया से दिल भर गया
ढूंढ ले अब कोई घर नया, ऐ मेरे दिल कहीं और चल

चल जहाँ गम के मारे न हों, झूठी आशा के तारे न हों
इन बहारों से क्या फ़ायदा, जिस में दिल की कली जल गई
ज़ख़्म फिर से हरा हो गया...

चार आँसू कोई रो दिया, फेर के मुँह कोई चल दिया
लुट रहा था किसी का जहाँ, देखती रह गई ये ज़मीं
चुप रहा बेरहम आसमां...
</poem>
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