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02:57, 22 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKFilmSongCategories
|वर्ग=अन्य गीत
}}
{{KKFilmRachna
|रचनाकार = मजरूह सु्ल्तानपुरी
, '''गायक:मोहम्मद रफ़ी
}}
<poem>
पुकारता चला हूँ मैं, गली गली बहार की
बस एक छाँव ज़ुल्फ़ की, बस इक निगाह प्यार की
पुकारता चला हूँ मैं..
ये दिल्लगी ये शोखियाँ सलाम की, यहीं तो बात हो रही है काम की
कोई तो मुड़ के देख लेगा इस तरफ़, कोई नज़र तो होगी मेरे नाम की
पुकारता चला हूँ मैं
सुनी मेरी सदा तो किस यक़ीन से, घटा उतर के आ गयी ज़मीन पे
रही यही लगन तो ऐ दिल-ए-जवाँ, असर भी हो रहेगा इक हसीन पे
पुकारता चला हूँ मैं
</poem>