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<poem>
शहर के दुकाँदारो कारोबार-ए-उलफ़त में
सूद क्या ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> क्या है, तुम न जान पाओगे
दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने मँहगे हैं
और नकद-ए-जाँ क्या है तुम न जान पाओगे
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे
</poem>
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