Changes

खुमानी, अखरोट! / गुलज़ार

8 bytes removed, 03:49, 24 फ़रवरी 2010
ख़ुमानी मोटी थी और अख़रोट का क़द कुछ ऊँचा था
भँवर कोई पीछे पड़ जाए, तो पत्थर की आड़ से होकर,
अख़रोट का हाथ पकड़ क्के पकड़के वापस भाग आती थी।
अख़रोट बहुत समझाता था,
अख़रोट का क़द कुछ सहम गया है
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
 
</poem>
Delete, Mover, Uploader
894
edits