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19:38, 25 फ़रवरी 2010 [[9. समयातीत पूर्ण ]]
<poem>हे क्रांति द्रष्टा !
तुमने आमूल बदल दिया
जीवन पद्धति को
कहा इंद्र पूजा व्यर्थ है
बंद कराके इंद्र पूजा
अपनी रक्षा आप करना सिखाया
अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध
तुम्हारा संघर्ष अनवरत जारी रहा
हर उस शक्ति से संघर्ष किया
जो जन विरोधी एवं निरंकुश थी
चाहे वह मामा कंस हो या क्रूर जरासंध
तुमने बताया खून के रिश्तों से बढ़कर
लोकमंगल है
नीति वही श्रेष्ठ है जो समाज के वृहद् हित में हो
प्रेम का मूल्य सबसे बढ़कर है
स्त्रियों का सम्मान और स्वतंत्रता
प्रथम धारणीय
निर्भय वही है जो निर्लिप्त है
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं सर्वप्रथम त्याज्य हैं
सत्य वह नहीं है जो हमने सुनकर माना है
सत्य वही है जिसका हम आविष्कार करें
हे परम क्रांतिकारी
हम अल्पज्ञ आज भी वहीँ खड़े हैं
जहाँ तुम्हारे समय थे
तुम अपने समय से कितना पहले
आए थे ?
हे अग्रगामी !
</poem>