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तहज़ीब के ख़िलाफ़ है / अकबर इलाहाबादी
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05:00, 26 फ़रवरी 2010
अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर
क्या
पूझते
पूछते
हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूलयह बात मुन्हसिर
<ref>टिकी</ref>
है तुम्हारी निगाह पर
</poem>
{{KKMeaning}}
Sandeep Sethi
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