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18:22, 26 फ़रवरी 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह = एक सूर्य रोटी पर/शांति मुमन
}}
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<poem>
शंख बजाकर बरसे बादल
खेती लहरी है
अँकुरे रेह-रेह में बीहन
मन में खेत टँके
दुःख कोई नहीं कि
पहले हाँसुली-बाँक बिके
सुनती नहीं हवा कछेर की
सचमुच बहरी है ।
चाह रही सुख को मुट्ठी में
बंद कर गाए
दुःख के साये दूर-दूर से
आकर नहीं डराये
पोखर के जल नहीं बनेगी
आशा दुहरी है ।
खेत बंटाई के देते हैं
नहीं रात भर सोने
सपने में सपने आते हैं
घर-विवाह गौने
पाँव रंगे हैं लाल रंग में
खुशियाँ ठहरी हैं ।
</poem>