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18:46, 26 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह=एक सूर्य रोटी पर/भीतर भीतर आग
}}
<poem>
मौसम की मनमानी - वह तो हद के पार गया ।
सारे अँखुवों को खेतों में पाला मार गया ।
दुबक गई चिड़ियाँ
पत्तों की फटी रजाई में ।
कुहरे की सौगात मिली
इसबार कमाई में ।
जैसे वर्षा आई, सूरज पल्ला झाड़ गया ।
सुबह-शाम दस्तक देती
रहती है सिरहाने ।
सबकुछ ठहर गया है
पछिया बात नहीं माने ।
ऐसी ठंड कि इसके आगे दिन यह हार गया ।
चित्र लिखे से गाछ और घर
साँसे भाप बनीं ।
इतनी सर्द कि आँखों से ही
सबने बात सुनी ।
रात-रात भर का सोचा फिर से बेकार गया ।
हुआ माघ में सावन
रितु की ऐसी आवाजाही
पवन और पानी ने मिलकर
बुनी ऐसी तबाही ।
पड़ा खाट पर किसना लगता सच को ताड़ गया ।
</poem>