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19:14, 26 फ़रवरी 2010
<poem>
ओ रे मौसम पूस माघ के
जब भी आना गाँव में
ढेरों बन्द लिफाफे लाना
शहरों से पंजाब के ।
सुजनी खाँस रही है माँ की
बहनों की अंगिया मटमैली
सूने खलिहानों का छाया
भाभी की आँखों में फैली ।
बाबा ने चौपहरा पूजा
रख दी मन में दाब के ।
खेतों के मेड़ों पर ठहका
करते थे जो आते-जाते
कितने अपने लालकका वे
आँखों से हैं बतियाते ।
सूखा या बाढ़ कहीं कुछ भी
गुल फूलेंगे आदाब के ।
गाँवों से निकली पगडंडी
मिलने आई दूर शहर से
बरफी पर बरसी महँगाई
ईद और होली के डर से
धूप-हवा से जीने का मन
अब तो बिना दबाव के ।
</poem>