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|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुमन
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<poem>
इस छोटे शहर की
बड़ी लगने वाली रात में
जब आती-जाती रोशनी के बीच
अँधेरा और घना हुआ है
बेटे, मुझको तुम्हारे ललाट की
प्रशस्ति और आँखों की चमक
याद आई है
कल तुम्हारे जन्मदिन पर
मन होता है सामने रहे
तुम्हारा चन्दन-तिलकित भाल
अभी-अभी पहनाए हैं
आशीषों के कवच
सिक्त किया है तुमको प्रार्थनाओं
के जल से
पूर्वजों के पुण्य से माँगा है
तुम्हारे लिए अभय
सब हुआ, सब होगा
मेरे बेटे,
पर कल आने वाली सोलह फरवरी
फिर फेंक देगी मुझको अपने अँधेरे में
इस छोटे शहर की बड़ा लगनेवाली रात
में उतरेगा तुम्हारा बचपन
तुम्हारी हँसी, तुम्हारी जिद
और मेरा अजस्र प्यार
और तुम चिमनियों भरे शहर
के धूल-धुएँ से लड़ते
पूरी पृथ्वी के लिए उजाला
बो रहे होगे
तुम्हारे माथे पर हाथ रखने की
इच्छा को प्यार करती हुई
तुम्हें दूर से देखूंगी
क्योंकि तुम्हारे और मेरे बीच
रोटी है ।

</poem>
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