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बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना / ग़ालिब
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01:51, 27 फ़रवरी 2010
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>बस कि दुश्वार है हर काम का
आसाँ
आसां
होनाआदमी को भी मयस्सर नहीं
इन्सां
इंसां
होना
गिरियां<ref>रोना</ref> चाहे है ख़राबी मेरे काशाने<ref>घर</ref> की
Sandeep Sethi
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