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पकरि बस कीने री नँदलाल / घनानंद
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09:08, 27 फ़रवरी 2010
काजर दियौ खिलार राधिका, मुख सों मसलि गुलाल ॥
चपल चलन कों अति ही अरबर, छूटि न सके प्रेम के जाल ।
सूधे किये बंक ब्रजमोहन, ’आनँदघन’ रस-ख्याल
॥१॥
॥
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Himanshu
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