<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक: पाखण्ड-व्रत-कथाखेलत फाग <br> '''रचनाकार:''' [[कात्यायनीरसखान]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
कविता में यह दन्द-फन्द रसखानछल-छन्दखेलत फाग सुहाग भरी, गन्द-भरभण्ड।अनुरागहिं लालन क धरि कै ।चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टाजीवन से जयचन्द... ...आलोचकज्यों परमानन्दभारत कुंकुम, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ...घट-घट केसर की पिचकारिन में व्यापि डकाररंग को भरि कै ॥हे खण्ड-खण्ड पाखण्डगेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।जय हो... जय हो... जय हो...जय-जय-जय-जय-जय हो...पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽजात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
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</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>