{{KKCatGhazal}}
<poem>
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगाजाएगा
इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा जाएगा
तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा जाएगा
ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा जाएगा
डूबते -डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा जाएगा
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा जाएगा
</poem>