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नींद में भी / सनन्त तांती
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16:48, 28 फ़रवरी 2010
नींद में भी कभी गुलाब खिलते हैं आँखों में।
प्रेम रहता है मेरे जागरण तक।
'''मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार'''
</poem>
अनिल जनविजय
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