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कल कहकल राह में जाते जो मिला रीछ का बच्चा।
ले आए वही हम भी उठा रीछ का बच्चा ।
सौ नेमतें खा-खा के पला रीछ का बच्चा ।
 
 
जिस वक़्त बड़ा रीछ हुआ रीछ का बच्चा ।
जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।।
जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।1।
था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।
बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा ।
आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।।2।
वह डोर भी रेशम की बनाई थी जो पुर ज़र।
जिस डोर से यारो था बँधा रीच का बच्चा।।बच्चा ।3।  झुमके वह झमकते थे, पड़े जिस पे करनफूल । मुक़्क़ैश५ की लड़ियों की पड़ी पीठ उपर झूल । और उनके सिवा कितने बिठाए थे जो गुलफूल । यूं लोग गिरे पड़ते थे सर पांव की सुध भूल । गोया वह परी था, कि न था, रीछ का बच्चा ।4।  एक तरफ़ को थीं सैकड़ों लड़कों की पुकारें । एक तरफ़ को थीं, पीरो६ जवानों की कतारें । कुछ हाथियों की क़ीक़ और ऊंटों की डकारें(१) । गुल शोर, मज़े भीड़ ठठ, अम्बोह७ बहारें । जब हमने किया लाके खड़ा रीछ का बच्चा ।।5।।  कहता था कोई हमसे, मियां आओ क़लन्दर८ । वह क्या हुए, अगले जो तुम्हारे थे वह बन्दर । हम उनसे यह कहते थे ‘‘यह पेशा है ‘क़लन्दर’।  हाँ छोड़ दिया बाबा उन्हें जंगल के अन्दर । जिस दिन से ख़ुदा ने यह दिया, रीछ का बच्चा’’ ।।६।।  मुद्दत में अब इस बच्चे को, हमने है सधाया ।  लड़ने के सिवा नाच भी इसको है सिखाया । यह कहके जो ढपली के तईं गत पै बजाया । इस ढब से उसे चौक के जमघट में नचाया । जो सबकी निगाहों में खपा ‘‘रीछ का बच्चा’’ ।।७।।  फिर नाच के वह राग भी गाया, तो वहाँ वाह । फिर कहरवा नाचा, तो हर एक बोली जुबां ‘‘वाह’’ । हर चार तरफ़ सेती९ कहीं पीरो जवां ‘‘वाह’’ । सब हँस के यह कहते थे ‘‘मियां वाह मियां’’ । क्या तुमने दिया ख़ूब नचा रीछ का बच्चा ।।८।।  इस रीछ के बच्चे में था इस नाच का ईजाद । करता था कोई क़ुदरते ख़ालिक़ के तईं याद । हर कोई यह कहता था ख़ुदा तुमको रखे शाद१० । और कोई यह कहता था ‘अरे वाह रे उस्ताद’ । ‘‘तू भी जिये और तेरा सदा रीछ का बच्चा’’ ।।९।।  जब हमने उठा हाथ, कड़ों को जो हिलाया । ख़म ठोंक पहलवां की तरह सामने आया । लिपटा(१) तो यह कुश्ती का हुनर आन दिखाया । वां छोटे बड़े जितने थे उन सबको रिझाया ।  इस ढब से आखाड़े में लड़ा रीछ का बच्चा ।।१०।।  जब कुश्ती की ठहरी तो वहीं सर को जो झाड़ा । ललकारते ही उसने हमें आन लताड़ा(२) । गह हमने षछाड़ा उसे, गह उसने पछाड़ा । एक डेढ़ पहर फिर हुआ(३) कुश्ती का अखाड़ा । गर हम भी न हारे, न हटा रीछ का बच्चा ।।११।।  यह दांव में पेचों में जो कुश्ती में हुई देर । यूं पड़ते रूपे-पैसे कि आंधी में गोया बेर । सब नक़द हुए आके सवा लाख रूपे ढेर । जो कहता था हर एक से इस तरह से मुंह फेर ।  ‘‘यारो तो लड़ा देखो ज़रा रीछ का बच्चा’’।।१२।। पाठान्तर—(१) जा० लिपटा बह तो (२) आ० लथाड़ा (३) श० आ० पहर हो गया  कहता था खड़ा कोई जो कर आह अहा हा । इसके तुम्हीं उस्ताद हो वल्लाह११ ‘‘अहा हा’’ । यह सहर१२ किया तुमने तो नागाह१३ ‘‘अहा हा’’ । क्या कहिये ग़रज आख़िरश ऐ वाह ‘‘अहा हा’’ । ऐसा तो न देखा, न सुना रीछा का बच्चा ।।१३।।  जिस दिन से ‘‘नज़ीर’’ अपने तो दिलशाद यही हैं । जाते हैं जिधर को उधर इरशाद१४ यही हैं । सब कहते हैं वह साहिबे ईजाद१५ यही हैं । क्या देखते हो तुम खड़े? उस्ताद यही हैं । कल चौक में था जिनका लड़ा रीछ का बच्चा ।15।
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