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'''गीतकार {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category: मज़रूह सुल्तानपुरीगीत]]<poem>देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आए तोआस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
तुम जो न आते हम तो मर जाते
क्या हम अकेले ज़िंदा रहते
तुमसे कहें क्या जो बीती दिल पे
दर्द-ए-जुदाई सहते सहते
आज हमारे प्यासे दिल पे
बनके बादल तुम छाए तो
देर लगी आने में तुमको ...
रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली, बन के सबा, बाग़े वफा में ...  मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे हम खिरामा ,बेताब दिल था बेचैन आँखें चाहत की खुशबू, यूँ ही ज़ुल्फ़ों खुद से उड़ेगी, खिजां हो या बहारां यूँ ही झूमते, युहीँ झूमते और खिलते रहेंगे, बन के कली बन के सबा बाग़ें वफ़ा मेंरहें ना रहें खफ़ा हम ...रहने लगे थे  खोये हम ऐसे क्या है मिलना क्या बिछड़ना नहीं है, याद हमको कूचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं है याद हमको, इसी सरज़मीं, इसी सरज़मीं पे हम तो रहेंगे, बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...रहें ना रहें हम ...  जब हम न होंगे तब हालत हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते ,वो हो गई थी पागल हमें लोग कहने लगे थेअश्कों से भीगी चांदनी में अब इक सदा सी सुनोगे चलते चलते , वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं पल भी बिछड़ें न हम तुमसे मिलेंगे,तुम वक़्त अगर रुक जाए तोबन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा देर लगी आने में तुमको ...  रहें ना रहें हम, महका करेंगे ...</poem>
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