ओ पंछी प्यारे सांझ सखा रे {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शैलेन्द्र}}[[Category:गीत]]<br /poem>बोले कारे बदरा तू कौन सी बोली बता रे <br />न जा न जा बैरी तू बिदेस न जाघननन मेघ-मल्हार सुना रिमझिम रस बरसा जा
मैं तो पंछी पिंजरे सनन-सनन हाय पवन झकोरा बुझती आग जलाएमन की मैना<br />पँख मेरे बेकार <br />बीच हमारे सात रे सागर<br /> कैसे चलूँ उस पार<br />बात नयन में आए मुझसे कही न जाएओ पंछी प्यारे कारे बदरा तू न जा ...<br />
फागुन महीना फूली बगिया <br />माथे का सिन्दूर रुलावे लट नागिन बन जाएआम झरे अमराई<br />लाख रचाऊँ उन बिन कजरा अँसुअन से धुल जाएकारे बदरा तू न जा ... चौरस्ते पे जैसे मुसाफ़िर पथ पूछे घबराएकौन देस किस ओर जाऊँ मैं खिड़की से चुप चुप देखूँ <br />मन मेरा समझ न पाएकारे बदरा तू न जा ..ऋतु बसंत की आई<br /poem>ओ पंछी प्यारे ...