गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ओटक्कुष़ळ (बाँसुरी) / जी० शंकर कुरुप
11 bytes added
,
09:23, 1 मार्च 2010
सदा के लिये आनन्द-लहरियों में तरंगित हो गया,
धन्य हो गया !
'''1929'''
</poem>
Himanshu
916
edits