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नया पृष्ठ: [[जायज-नाजायज / संध्या पेडण॓कर]] <poem> अपना है तो जायज है कभी स्वाभिमा…
[[जायज-नाजायज / संध्या पेडण॓कर]]
<poem>

अपना है तो
जायज है
कभी स्वाभिमान है,
कभी
अस्मिता है
कभी और कुछ
सकारात्मक
जिसका पोषण करना
जरूरी है
किसी और का हो
तो
गैरजरूरी है,
नाजायज है
बेमतलब है
अकारण है
इसलिए
एन केन प्रकारेण
अपनी इज्जत गिरवी रखकर ही सही
उसे कुचलना चाहिए
कहीं उसका अहंकार
अपने अहंकार कस आगे
भारी पड़ा तो?
दिखावटी टुच्ची लडाई
सच ने जीत ली तो?
नाक कट जायेगी,
स्वाभिमान मिट जायेगा
इसलिए
नाजायज अहंकार को कुचलने के लिए
जायज अहंकार को बिच जाना होगा
बेआबरू का सैलाब बह जाने देना होगा

हो सके तो
उसी सैलाब में
उसके अहंकार को
कुचलना होगा
दफनाना होग
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