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या रब! अपने ख़त को हम पहुँचायें क्या
मौज-ए-ख़ूँ<ref>ख़ून की तरंग</ref> सर से गुज़र ही क्यों न जाये आस्तान-ए-यार<ref>यार की चौखट</ref> से उठ जायें क्या
उम्र भर देखा किये मरने की राह
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