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ज़ौर से बाज़ आये पर बाज़ आये क्या / ग़ालिब
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01:57, 2 मार्च 2010
या रब! अपने ख़त को हम पहुँचायें क्या
मौज-ए-ख़ूँ<ref>
ख़ून की तरंग
</ref> सर से गुज़र ही क्यों न जाये आस्तान-ए-यार<ref>
यार की चौखट
</ref> से उठ जायें क्या
उम्र भर देखा किये मरने की राह
Sandeep Sethi
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