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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>लाज़िम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और
तन्हा गये क्यों? अब रहो तन्हा कोई दिन और
लाज़िम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और मिट जायेगा सर, गर तेरा पत्थर न घिसेगा हूँ दर पे तेरे नासिया-फ़र्सा<brref>माथा घिस रहा</ref>तन्हा गये क्यों अब रहो तन्हा कोई दिन और <br><br>
मिट जायेगा सर, गर तेरा पथ्थर न घिसेगा <br>आये हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊँ हूँ दर पे तेरे नासियाफ़र्सा माना कि हमेशा नहीं, अच्छा, कोई दिन और <br><br>
आये हो कल और आज ही जाते हुए कहते हो कि जाऊँ <br>, क़यामत को मिलेंगे माना कि हमेशा नहीं अच्चा क्या ख़ूब! क़यामत का है गोया कोई दिन और <br><br>
जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे <br>हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर, जवां था अभी आ़रिफ़ क्या ख़ूब! क़यामत का है गोया तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और <br><br>
हाँ अए फ़लकतुम माह-ए-पीर, जवाँ था अभी आरिफ़ शब-ए-चार-दहुम<brref>चौदहवीं का चाँद</ref> थे मेरे घर के क्या तेरा बिगड़ता जो फिर क्यों मरता रहा घर का वो नक़्शा कोई दिन और <br><br>
तुम माहकौन से ऐसे थे खरे दाद--शब-एसितद<ref>लेन-चरदुहुम थे मेरे घर के देन<br/ref>के फिर क्यों न रहा घर का वो नक़्शा कोई दिन और करता मलक-उल-मौत<brref>यमराज<br/ref>तक़ाज़ा कोई दिन और
तुम कौन मुझसे तुम्हें नफ़रत सही, नय्यर से ऐसे थे खरे दाद-ओ-सितद के <br>लड़ाई करता मलकउलमौत तक़ाज़ा बच्चों का भी देखा न तमाशा कोई दिन और <br><br>
मुझसे तुम्हें नफ़्रत सही, नय्यर से लड़ाई <br>बछों का भी देखा ग़ुज़री तमाशा बहरहाल या मुद्दत ख़ुशी-नाख़ुश करना था, जवां-मर्ग! गुज़ारा कोई दिन और <br><br>
गुज़री न बहरहाल या मुद्दत ख़ुशी-नाख़ुश <br>करना था जवाँमर्ग! गुज़ारा कोई दिन और <br><br> नादाँ नादां हो जो कहते हो कि क्यों जीते हो 'ग़ालिब' <br>क़िस्मत में है मरने की तमन्ना कोई दिन और <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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