Changes

दाँत / नीलेश रघुवंशी

20 bytes added, 07:18, 3 मार्च 2010
|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
गिरने वाले हैं सारे दूधिया दाँत एक-एक कर
 
टूटकर ये दाँत जाएंगे कहाँ?
 
छत पर जाके फेंकूँ या गाड़ दूँ ज़मीन में
 
छत से फेंकूंगा चुराएगा आसमान
 
बनाएगा तारे
 
बनकर तारे चिढ़ाएंगे दूर से
 
डालूँ चूहे के बिल में
 आएंगे आएँगे लौटकर सुन्दर और चमकीले चिढाएंगे चिढाएँगे बच्चे ’चूहे के दाँत’ कहकर खपरैल पर गए तो आएंगे आएँगे कवेलू की तरह 
या उड़ाकर ले जाएगी चिड़िया
गाड़ूंगा गाड़ूँगा ज़मीन में बन जाएंगे जाएँगे पेड़ 
खाएगा मिट्ठू मुझ से पहले फल रसीले
 
मुट्ठी में दबाए दाँत दौड़ता है बच्चा
 
पीछे-पीछे दौड़ती है माँ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits