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नन्हे सपने / नीलेश रघुवंशी
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|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
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एक दिन
तुमने कुछ कहा था?
याद नहीं
उसी को याद करता मेरा अकेलापन
ख़ामोश रात जागती आँखें
नन्हें जीवित सपने
एक दिन के।
</poem>
अनिल जनविजय
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