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घर-बाहर / चंद्र रेखा ढडवाल

17 bytes removed, 07:44, 5 मार्च 2010
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उड़ने की हुलस लिए फ़ाख़्ताओं नेफ़र्श से छत तकस्कूलइस दीवार से उस दीवार तकअस्पताल भाँप लिया कमरे कोदफ़्तरकाम करते हुए कहीं भीया चलते हुए सड़क पर नीचे से ऊपरदाँए से बाँएमैं औरत होती हूँ****झाड़ते-पोंछतेबर्तन-भांडा करतेउड़ती रहीं वेउधड़ा हुआ सिल्स्तेहाँपराँधते-हाँप कर थक जाने तकपकाते घर मेंपंखों के नुच जाने तकमाँ होती हूँ
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