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03:04, 6 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुमन
}}
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<poem>
इस तेज़ बारिश में
जब बाँस और करोटन के पत्ते
साथ-साथ भींग रहे हों
मुझे उस चिड़ियाँ की याद आई है
जो कल तक जुटी थी
अपना घोंसला बनाने की जुगाड़ में
अनायास उस लाल रिबन वाली लड़की की तरह
आई वह तेज़ बारिश आज ही
आते ही उसने जिसने उछाल दिया जोर से पत्थर
जाने किसके सिल लगा वह,
बहा किसका लहू
और उसको तो फुरसत ही नहीं हँसने से
इस बारिश ने भी कहाँ देखा
टप-टप चूते घोसले में
भींग रही चिड़िया की बच्ची
अपना पंख फैलाये उसको बचाने की
कोशिश में रूआँसी है चिड़ियाँ माँ ।
</poem>
४ अगस्त, २००८