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|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुमन
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<poem>

मेमने की तरह उछलता
दौड़ लगाता बच्चा
सड़क के किनारे-किनारे
बूढ़ा बाबा उसके पीछे-पीछे जाता है
अपने कन्धों के सहलाता

बुनी जा रही है सड़कों पर-
बच्चे के पैरों की छोटी-छोटी छापें
बूढ़ा उन छापों को उठाता है
अपनी साँस के सिरे पर
अपनी आँखों में भरता
और देखता है वह
फूटते हुए
रोशनी के अजस्र झरने
अपने भविष्य के अँधेरे
खुरचते हुए ।

</poem>
५ जून, १९९३
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