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नई पीढ़ी / रघुवीर सहाय

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|रचनाकार = रघुवीर सहाय|संग्रह = एक समय था / रघुवीर सहाय
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<poem>
एक नौजवान और उससे छोटी एक छोकरी
हर रोज़ मिलते हैं
चकर चकर बोलती रहती है लड़की
पुलिया पर बैठे लड़के को छेड़ती
वह सोच में पड़ा बैठा रह जाता हैदोनों में एक नौजवान और उससे छोटी एक छोकरी<br>भी तत्काल कुछ नहीं मांगताहर रोज़ मिलते हैं<br>न तो वफ़ादारी का वायदा, न बड़ी नौकरी समाज सेचकर चकर बोलती रहती है लड़की<br>पुलिया पर बैठे लड़के को छेड़ती<br><br>वे एक क्षण के आवेग में सिमट रहते हैं
वह सोच में पड़ा बैठा रह जाता है<br>दोनों में एक भी तत्काल कुछ नहीं मांगता<br>न तो वफ़ादारी का वायदा, न बड़ी नौकरी समाज से<br>वे एक क्षण के आवेग में सिमट रहते हैं<br><br> यह नई पीढ़ी है<br>भावुकता से परे व्यावहारिकता से अनुशासित<br>इस नई पीढ़ी को ऐसे ही स्वाधीन छोड़ दें.दें।</poem>
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