|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}<poem>अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं<br>एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं<br><br>
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी<br>चाक दिल और भी हैं चाक क़बा और भी हैं<br><br>
क्या हुआ गर मेरे यारों की ज़ुबानें चुप हैं<br>मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं<br><br>
सर सलामत है तो क्या संग-ए-मलामत की कमी<br>जान बाकी है तो पैकान-ए-कज़ा और भी हैं<br><br>
मुंसिफ़-ए-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाये <br>
लोग कहते हैं कि अरबाब-ए-जफ़ा और भी हैं
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