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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
ऊधौ यह ज्ञान कौ बखान सब बाद हमैं
::सूधौ बाद छाँड़ि बकबादहिं बढावै कौन ।
कहै रतनाकर बिलाय ब्रह्म काय माहिं
::आपने सौं आपनुपौ आपुनौ नसावै कौन ॥
काहू तौ जनम मैं मिलैंगी श्यामसुन्दर कौ
::याहू आस प्रानायाम-सांस मैं उड़ावै कौन ।
परि कै तिहारी ज्योति-ज्वाल की जगाजग मैं
::फेरि जग जाइबे की जुगती जरावै कौन ॥51॥
</poem>
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