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चिंता / भाग २ / कामायनी / जयशंकर प्रसाद
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13:20, 16 मई 2007
बिछुडे
बिछुडे़
तेरे सब आलिंगन,
पुलक-स्पर्श का पता नहीं,
टकराती होगी अब उनमें
तिमिगिलों
तिमिंगिलों
की
भीड
भीड़
अधीर।
दिग्दाहों से धूम उठे,
या
जलचर
जलधर
उठे क्षितिज-तट के
सघन गगन में भीमप्रकंपन,
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Hemendrakumarrai