Changes

जीतते मर कर जिसको वीर।
 
तप नहीं केवल जीवन-सत्य
 
करूण यह क्षणिक दीन अवसाद,
 
तरल आकांक्षा से है भरा-
 
सो रहा आशा का आल्हाद।
 
 
प्रकृति के यौवन का श्रृंगार
 
करेंगे कभी न बासी फूल,
 
मिलेंगे चे अति शीघ्र
 
आह उत्सुक है उनकी धूल।
 
 
पुरातनता का यह निर्मोक
 
सहन करती न प्रकृति पल एक,
 
नित्य नूतनता का आंनद
 
किये है परिवर्तन में टेक।
 
 
युगोम की चट्टानों पर सृष्टि
 
डाल पद-चिन्हों चली गंभीर,
 
देव,गंधर्व,हसुर की पंक्ति
 
अनुसरण करती उसे अधीर।"
 
 
"एक तुम, यह विस्तृत भू-खंड
 
प्रकृति वैभव से भरा अमंद,
 
कर्म का भोग, भोग का कर्म,
 
यही जड का चेतन-आनन्द।
 
 
अकेले तुम कैसे असहाय
 
यजन कर सकते? तुच्छ विचार।
 
तपस्वी आकर्षण से हीन
 
कर सके नहीं आत्म-विस्तार।
 
 
दब रहे हो अपने ही बोझ
 
खोजते भी नहीं कहीं अवलंब,
 
तुम्हारा सहचर बन कर क्या न
 
उऋण होऊँ मैं बिना विलंब?
 
 
समर्पण लो-सेवा का सार,
 
सजल संसृति का यह पतवार,
 
आज से यह जीवन उत्सर्ग
 
इसी पद-तल में विगत-विकार
 
 
दया, माया, ममता लो आज,
 
मधुरिमा लो, अगाध विश्वास,
 
हमारा हृदय-रत्न-निधि
 
स्वच्छ तुम्हारे लिए खुला है पास।
 
 
बनो संसृति के मूल रहस्य,
 
तुम्हीं से फैलेगी वह बेल,
 
विश्व-भर सौरब से भर जाय
 
सुमन के खेलो सुंदर खेल।"
 
 
"और यह क्या तुम सुनते नहीं
 
विधाता का मंगल वरदान-
 
'शक्तिशाली हो, विजयी बनो'
 
विश्व में गूँज रहा जय-गान।
 
 
डरो मत, अरे अमृत संतान
 
अग्रसर है मंगलमय वृद्धि,
 
पूर्ण आकर्षण जीवन केंद्र
 
खिंची आवेगी सकल समृद्धि।
Anonymous user