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{{रिश्ते KKRachna| रचनाकार=संध्या पेडणेकर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}
<poem>
स्नेह नहीं
खाली घड़े हैं
अनंत पड़े हैं
उनके अन्दर व्याप्त अन्धःकारअन्धकार
उथला है पर
पार नहीं पा सकते उससे
अन्धःकार अन्धकार से परे कुछ नहीं
उजास एक आभास है
क्षितिज कोई नहीं